महादेव काशीमे सप्तर्षिक बजेलनि। ओ लोकनि एला। वशिष्ठक संग हुनकर स्त्री अरुन्धती सेहो एली। महादेव सभकें विवाहक कथा लऽ हिमालयक ओतऽ पठेलनि। ऋषि लोकनिसँ महादेवक अनुरोध सुनि हिमालय आ मेना केर आँखिसँ नोर झहरऽ लगलनि। ऋषि-मुनि गौरी आशीर्वाद देलनि। अरुन्धती मेनाकें महादेवक महिमाक गुणगान सुनेलनि। कथा ठीक बार विवाहक दिन ताकल गेल। विवाहक दिन
ताकल गेल। विवाहक दिन फागुन वदि चतुर्दशी निश्चित भेल। सप्तर्षि लोकनि प्रसन्न भऽ काशी घुरि एला। एहि ठाम आबि महादेवकें सभ बात कहलनि । महादेव प्रसन्न भऽ हुनका लोकनिकेँ बरियाती चलबा लेल हकार देलनि। ओहिठामसँ महादेव कैलाश एला। देवता लोकनिकेँ निमन्त्रण आ हकार देबाक भार नारद मुनिकें देलनि। महादेवक गण सभ बरियातीक तैयारी करऽ लगला । वरकें सजाओल जाय लागल। हुनका गहना की देल जेतनि? जे सभ हिनका लग गहना रहनि ताहिसँ हुनका सजाओल गेल। माथपर चन्द्रमाक मुकुट, शरीरमे साँपक गहना । जटाकें झारि कऽ नीक जकाँ बान्हि देल गेलनि । नवका बाघम्बर ओढ़ाओल गेलनि। एतबे श्रृंगार महादेव परम सुन्नर लागऽ लगला ।
चारिम दिन महादेवक बरियाती हिमालयक ओतऽ पहुँचल | हिमालय अपन कुटुम्बक संग बरियाती लोकनिक सत्कारमे लागि गेला। मेनाकें बड़ मोन लागल छलनि जे जाहि वर लेल गौरी एतेक कष्ट सहलनि अछि से वर केहन अछि? ओ नारद मुनिकें संगल दुआरिपर वर देखबा लेल गेली ।
मेना सावधान भS हुलसि कऽ देखऽ लगली । पहिने महादेवक सेवक भूत, प्रेत, पिशाच सभ आयल । ओकरा सभक पहिरन ओढ़न, बाजब भूकब, नाचब- गायब देखि मेना डेरा गेली। जी धक धक कर लगलनि। एहने ने वर होथि । ताबत महादेव सेहो आबि गेला । बसहापर चढ़ल, पाँच मुँह, तीन आँखि, दस गोट हाथ, देहमे छाउर लेपने, कौड़ीक माला पहिरने, माथपर चन्द्रमा, एक हाथमे खप्पर, दोसरमे भिक्षापात्र, तेसरमे पिनाक, चारिममे तीर, पाँचममे त्रिशूल, छठममे अभय । एहि तरहेँ सभ हाथमे किछु ने किछु भरल। हाथीक चाम पहिरने, ऊपरसँ बाघम्बर ओढ़ने, सौंसे देहमे साँप पटायल, आँखि मुनने आ थरथर कपैत ।
नारद कहलनि यैह वर महादेव छथि। ई देखैत मेना बेहोश भऽ गेली। मेना कहलनि जे 'गे जिद्दी छौड़ी ई की केलें । एहन वरक संग कोनो रहबैं?........ Mala jha
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