मधुश्रावणी व्रत कथा पहिल दिनक कथा मौना पंचमीक कथा एक दिन एक बूढ़ी स्नानक हेतु धार गेला पर देखलन्हि जे धारमे चिकनी पात पर पाँच गोट किछु लहलहाइत छल । ओ जीव बूढ़िके देखि बाजल हे बूढ़ी । गाम जा लोककें सूचित करियो जे आइ मौना पञ्चमी थिकैक आइ लोक पाँच झाक चिक्कनि माँटि आनि, घर आँगन पवित्रसँ नीपि, तेलकूड लगाए, स्नान कर अँगनामे चिकनी माँटिक पाँच टा थुम्हा बनावधि । ताहिमे सिन्दुर-पिठार लगाए उपरसँ दुबि साटि देथि । नव वासनमे खीर घोरजाठर रान्हथि। विसहराक पूजा कए हुनका दूध लावा चढ़ावथि आ खीर घोरजावर उत्सर्गंथि। झोआ नेबो, आमक पखूआ, अमतौआ दाड़िम, नीमक पात, नेङरा कुश आ धामिक पात आदि चढ़ावधि । ई सब केलाक बाद आइ सब केओ तीतकोत खाए खीर-घोरजाउर खाथि । घरक दुआरिक दुनू भाग गोबरसँ फ्रेंच काढ़ने नागक चित्र बनाए, ओकर मुँहमे दही आ दूबि लगा देथि । जे केओ एहि तरह पावनि करती तिनका सब प्रकारक कल्याण हेतन्हि आज जे ऐना नहि करती तिनका हानि होयतनि । बूढ़ी नहाक आङन एलीह त गाममे सबके कहि देलथिन । गामक किछु लोक ई पावनि नहि केलक आऽ किछु लोक एकरा फूसि फटक बूझि अनठाए देलक पावनि नहि कएलक । जे सब पावनि केलक से सब ठीक रहल आ जे सब
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