( १ ) जय-जय भैरवि असुर-भयावनि, पशुपति-भामिनि माया । हज सुमति वर दिये गोसाउनि, अनुगत गति तुअ पाया । पर रैनि शवासन शोभित, चरण चन्द्रमणि चूडा । दत क दैत्य मारि मुँह मेलल, कतओ उगिलि कैल कडा । सामर वरन नयन अनुरंजित, जलद जोग फुल फोका । -कट विकट ओठ-पुट पाँडरि, लिधुर फेल उठ कोका ॥ घन-घन घनन घुघुर कटि बाजय, हन-हन कर तु काता विद्यापति कवि तुअ पद सेवक, पुत्र बिसरू जनु माता । ( २ ) सिंह पर एक कमल राजित, ताहि ऊपर भगवती । शंख गहि गहि चक्र गहि गहि लोक के माँ पालती । दाँत खट-खट जीह लह लह सोणित दाँत मढ़ावती । शोणित टपटप पिबथि जोगिनि, विकट रूप देखावती । ब्रह्मा एलन्हि विष्णु एलन्हि, शिवजी एलन्हि एहि गती । सिंह पर एक कमल० । ( ३ ) दुखियाक दिन बड़ भारी हे काली मइया । कोखियामे पुत्र नहि, सींथो सिनुर नहि, कोना कऽ दिवस गमायब हे काली मइया । सेर न पसेरी काली, द्वारा ने दरबज्जा काली, कथी लए दिवस गमेबइ हे काली मइया । सूरदास प्रभु तोहरे दस के, सदा रहब रछपाल, है काली मइया, दुखियाक दिन बड़ भारी ।