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कोन दिन आहे काली तोहर जनम भेल, कोन दिन भेल छठिहार।

कोन दिन आहे काली तोहर जनम भेल, कोन दिन भेल कटिहार । शुक्र दिन आहे सेवक हमरो जनम भेल, बुध दिन भेल छठिहार । पहिरि ओढ़िय कोली गहवर टाढि भेली, करबमे काली के सिंगार । कोन फूल ओढ़न माँ के कोन फूल पहिरन, कोन फूल सोलह सिंगार । चम्पा फूल ओढ़न, जूही फूल पहिरन, ओढ़हुल फूल सिंगार । भनहि विद्यापति सुनु माता काली, सेवक रहु रक्षपाल ॥ कोन दिन।।

है माँ विनती करी कर जोड़ि, हे माँ अरज करी कर जोडि ।

है माँ विनती करी कर जोड़ि, हे माँ अरज करी कर जोडि । चानन घसि माँ हे गहबर दौरल, सिरा देल धूमन धूप । बॉटल सूत मैया अँचरी गुथायब, नीचा देव घुँघरू लगाय । करिया छागर सेहो चढायब, करिय मनोरथ पूर । हो माँ

हे भवानी दुख हरू माँ पुत्र अपनो जानिके ।

हे भवानी दुख हरू माँ पुत्र अपनो जानिके । दय रहल छी दुख भारी बीच भंवर में आना । आबि आशामे पडल छी की करू हम कहानियाँ । विश्वमाता छी अहाँ माँ आह ! से हम मानिक । कोटिओ न पैर छोड़ब हाथ राखब छानिक । दीन प्रभु हम नित्य पूजा नेम व्रत का ठानी ।

जय-जय भैरवि असुर-भयावनि, पशुपति-भामिनि माया

( १ ) जय-जय भैरवि असुर-भयावनि, पशुपति-भामिनि माया । हज सुमति वर दिये गोसाउनि, अनुगत गति तुअ पाया । पर रैनि शवासन शोभित, चरण चन्द्रमणि चूडा । दत क दैत्य मारि मुँह मेलल, कतओ उगिलि कैल कडा । सामर वरन नयन अनुरंजित, जलद जोग फुल फोका । -कट विकट ओठ-पुट पाँडरि, लिधुर फेल उठ कोका ॥ घन-घन घनन घुघुर कटि बाजय, हन-हन कर तु काता विद्यापति कवि तुअ पद सेवक, पुत्र बिसरू जनु माता । ( २ ) सिंह पर एक कमल राजित, ताहि ऊपर भगवती । शंख गहि गहि चक्र गहि गहि लोक के माँ पालती । दाँत खट-खट जीह लह लह सोणित दाँत मढ़ावती । शोणित टपटप पिबथि जोगिनि, विकट रूप देखावती । ब्रह्मा एलन्हि विष्णु एलन्हि, शिवजी एलन्हि एहि गती । सिंह पर एक कमल० । ( ३ ) दुखियाक दिन बड़ भारी हे काली मइया । कोखियामे पुत्र नहि, सींथो सिनुर नहि, कोना कऽ दिवस गमायब हे काली मइया । सेर न पसेरी काली, द्वारा ने दरबज्जा काली, कथी लए दिवस गमेबइ हे काली मइया । सूरदास प्रभु तोहरे दस के, सदा रहब रछपाल, है काली मइया, दुखियाक दिन बड़ भारी ।