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अवधि मास छल भादव सजनी गे, निज कय गेला बुझाय बटगवनी

अवधि मास छल भादव सजनी गे, निज कय गेला बुझाय से दिन आबि तुलायल सजनी गे, धिरज धयल ने जाय । अति आकुल पहु बिनु सजनी गे, सुन्दर अति सुकुमार । अकछि हिया पथ हेरथि सजनी गे, अजहुँ ने आयल मुरारी । खन-खन मदन दहो दिस सजनी गे, अजहुँ ने आयल मुरारी । से दुख काहि बुझायब सजनी गे, बैसब ककरा लग जाय । हरि गुण सुमरि बिकल भेल सजनी गे, के बहुत दु:ख मोर । विद्यापति कवि गाओल सजनी गे, आयल नन्द किशोर