सती केर कथा सृष्टि रचना में पहिने विष्णु तखन महादेव आ फेर ब्रह्मा क जन्म भेलनि। ब्रह्मा अपना शरीर सं देवता आ ऋषि- मुनि, बमुँह सं शतरूपा नामक स्त्री आ मनु, दहिना आँखी सं अत्रि, कान्ह सं मरीचि आ दाहिना पांजर सं दक्ष प्रजापति के जन्म देलखिन। ब्रह्मा के संतान सब सेहो सृजन कर लगला, मरीचिक बेटा कश्यप आ अत्रिक क पुत्र चंद्रमा मनु के दु बेटा प्रियव्रत आ उत्तानपाद और तीन बेटी आकूति, देवहुति आ प्रसूति भेलखिन । प्रसूति के विवाह दक्ष प्रजापति सं भेल जिनका सं साठि टा कन्या क जन्म भेल। ओहि में आठ क विवाह धर्म सं, ग्यारह के विवाह रूद्र सं, तेरह कश्यप, सताईस चंद्रमा आ एक गोट सती क विवाह महादेव सं भेलनि। चंद्रमा अपना पत्नी सब में रोहिण के सब सं बेसी मानैत छलैथ जाहि सं बाकि छबिसो हुनका सं क्रोधित भय प्रजापति लग शिकायत केलखिन। प्रजापति चंद्रमा के बुझेलखिन मुदा ओ काँन बात नहि देलखिन त क्रोधित भय दक्ष हुनका श्राप देलखिन - 'अहाँ के क्षय रोग भय जायत आ अहाँ क सम्पूर्ण शरीर गलि जायत। "चंद्रमा क शरीर दिन दिन गल लागल। ओ सब लग गोहारी लगेलैथ मुदा कियो मदद नय केलक तँ ओ चंद्रमा अपना पत्नी सब में रोहिण के सब
मैना क मोह भंग- मैना के कोनों तरहे होश में आनल गेल आ जखन ओ होश में एयलि त नारद व जिह कर लागलि - नारद अहाँ त हमरा सब के कतहु मुँह देखेवर जोगर नहि रह देलउं । अहाँ त महा ठग छी । अहाँ कहलऊ महादेव एना छैथ ओना छैथ हुनका पएवाक ल गौरी तपस्या कर । हमरा बेटी के अपमान भेल सं अलग आ एहन बर। कतए छैथ ओ सप्तऋषि आ कतए वशिष्ठ, हुनका सब के कि हेतैन, मनोरथ त हमर मनहि रहि गेल इ। हे गौरी तोरा कि भेलौ जे एहन सुन्दर सुन्दर देवता सब छोङि एहन कुरूप वर लेल तुं तपस्या केलआ इ कहैत मैना एकांत में जा कानए लागलि । ब्रह्मा कहलखिन - कि महादेव सब देवता में पैघ छैथ मुदा मैना टस-स मस नहि भेलखिन। दसो दिक्पाल (सूर्य, अग्नि, यम, नैऋति, वरुण, ईशान, ब्रह्मा तथा शेषनाग आदि) मिली क मैना क बुझेलखिन, मैना कहलखिन कि हम गौरी क जहर द देव मुदा एहन कुरूप वर सं गौरी क विवाह नहि करब । हिमालय एलखिन आ मैना क कहलखिन - कि किया एना बताहि जेकाँ कैरत छी, त्रिलोकिनाथ स्वंग द्वार पर आयल छैथ आ अहाँ जिद केने बैसल छी, मुदा मैना कहलखिन गौर क पाथरि में बानहि पोखैर में डूबा देव मुदा ओकर विवाह महादेव सं नहि करब । विष्णु सेहो मनेलखिन मुदा मैना अपना बात ध