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चललि शयन गृह सुन्दरि रे, आनन्द उर वृन्दा शिर सौं बटगवनी

चललि शयन गृह सुन्दरि रे, आनन्द उर वृन्दा शिर सौं ससुराल घोघट रे, जनि उगल चन्दा ॥ चलइत नूपुर किंकिन रे, दौड़ल दुहू काने दुर से हँस शब्द करू रे, घर पिय जिप शाने ।। डरहु ने जानि चकबा शिशु रे, उर कुच युग छाजे पतन प्रश्न और आंसर रे, जति झपटत वाजे नाभि विवरण सं निकसलि रे, दोमावलि साँपे । से सौतिन वध कारन रे, आँचर रहु झापे ।। कह अनुभव करि "वादरि" रे, देखैत बड़ सुखलागे