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दोसर दिनक कथाबिहुला ओं मनसाक कथा

दोसर दिनक कथा बिहुला ओं मनसाक कथा मनसा महादेवक मानस पुत्री छलीह । ओ जनमितहि युवती भए गेलीह । नाङटि रहलाक कारणे हुनक लाजक रक्षा हेतु साँप हुनका देहमे लेपटाय गेल । ऐ. सबसँ गौरी अप्रसन्न भार गेलीह । तें हेतु मनसाक कैलाश त्यागि अन्यत्र जाए पडलनि । महादेवक कृपास आ मर्त्य- भुवन चलि ऐलीह । हुनक इच्छा छल जे लोक हुनक पूजा करए ओहि समयमे मर्त्यलोकमे चन्द्रधर (चन्दू) नामक एक पैघ सौदागर रहए । पैक देखाउसि आनो लोक करैत अछि। तें मनसाक मौनमे भेल जे पहिने चन्दूए हमर पूजा करए त देखा-देखी आनो हमर पूजा करए लागत । चन्दू महादेवक परम भक्त छल। ओ महादेव छोड़ि आन देवताक पूजा करब नहि गछलक । ओकर उत्तर छ जे दहिना हाथ महादेवक देने छियनि बामा हाथे हम अहाँक पूजा कए सकैत छी ।" मनसा ई. नहि जंचल। ओ तमसा गेलीह । चन्दूक छओ गोट बेटाक ओ साँप इसबार्क मारि देलनि । चन्दूक बूढ़ारीमे पुनः एक बेटा भेल । हुनक टिप्पनि देखि ज्योतिषी कहलक जे इही बेशी दिन नहि जीताह। हिनका विवाहक दिन कोबरहिमे साँप इंसि लेत । चन्दू अत्यन्त दुःखी भेलाह किन्तु साध्य कोन ओहि बेटाक नाम लक्ष्मीधर (बाली लखन्दर) पड़ल । लक्ष्मीधर के छवे मास भेला पर चन्दू अप