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प्रीतम प्रीत लगाकय जाइ छए विदेश गे बटगवनी

प्रीतम प्रीत लगाकय जाइ छए विदेश गे । धरब जोगिन के भेष गे ना ॥ चैत चित नहि थीर वैशाख गर्मी के दिन । जेठ चिठियो ने दै. छे हमर बालम गे, धरब जोगिन के भेष गे ना ।। आषाढ़ बरिसय दिन राति सावन झिमिक झिमिक पानि । डेरा ऑन गे, धरब जोगिन के भेष गे ना ।। आसिन हमरा लगाएब कातिक कन्त लिखि पठायब । अगहन मोन होइहै जइतौं नइहर गे, धरब जोगिन के भेष गे ना ॥ पिया के बजाय । दुनू मिलि गे, धरब जोगिन के भेष गे