Skip to main content

Posts

Showing posts from July, 2023

मधुश्रावणी व्रत कथा : चारिम दिनक कथा

सती केर कथा सृष्टि रचना में पहिने विष्णु तखन महादेव आ फेर ब्रह्मा क जन्म भेलनि। ब्रह्मा अपना शरीर सं देवता आ ऋषि- मुनि, बमुँह सं शतरूपा नामक स्त्री आ मनु, दहिना आँखी सं अत्रि, कान्ह सं मरीचि आ दाहिना पांजर सं दक्ष प्रजापति के जन्म देलखिन। ब्रह्मा के संतान सब सेहो सृजन कर लगला, मरीचिक बेटा कश्यप आ अत्रिक क पुत्र चंद्रमा मनु के दु बेटा प्रियव्रत आ उत्तानपाद और तीन बेटी आकूति, देवहुति आ प्रसूति भेलखिन । प्रसूति के विवाह दक्ष प्रजापति सं भेल जिनका सं साठि टा कन्या क जन्म भेल। ओहि में आठ क विवाह धर्म सं, ग्यारह के विवाह रूद्र सं, तेरह कश्यप, सताईस चंद्रमा आ एक गोट सती क विवाह महादेव सं भेलनि। चंद्रमा अपना पत्नी सब में रोहिण के सब सं बेसी मानैत छलैथ जाहि सं बाकि छबिसो हुनका सं क्रोधित भय प्रजापति लग शिकायत केलखिन। प्रजापति चंद्रमा के बुझेलखिन मुदा ओ काँन बात नहि देलखिन त क्रोधित भय दक्ष हुनका श्राप देलखिन - 'अहाँ के क्षय रोग भय जायत आ अहाँ क सम्पूर्ण शरीर गलि जायत। "चंद्रमा क शरीर दिन दिन गल लागल। ओ सब लग गोहारी लगेलैथ मुदा कियो मदद नय केलक तँ ओ चंद्रमा अपना पत्नी सब में रोहिण के सब

मधुश्रावणी पूजाक नवम दिन के कथा

मैना क मोह भंग- मैना के कोनों तरहे होश में आनल गेल आ जखन ओ होश में एयलि त नारद व जिह कर लागलि - नारद अहाँ त हमरा सब के कतहु मुँह देखेवर जोगर नहि रह देलउं । अहाँ त महा ठग छी । अहाँ कहलऊ महादेव एना छैथ ओना छैथ हुनका पएवाक ल गौरी तपस्या कर । हमरा बेटी के अपमान भेल सं अलग आ एहन बर। कतए छैथ ओ सप्तऋषि आ कतए वशिष्ठ, हुनका सब के कि हेतैन, मनोरथ त हमर मनहि रहि गेल इ। हे गौरी तोरा कि भेलौ जे एहन सुन्दर सुन्दर देवता सब छोङि एहन कुरूप वर लेल तुं तपस्या केलआ इ कहैत मैना एकांत में जा कानए लागलि । ब्रह्मा कहलखिन - कि महादेव सब देवता में पैघ छैथ मुदा मैना टस-स मस नहि भेलखिन। दसो दिक्पाल (सूर्य, अग्नि, यम, नैऋति, वरुण, ईशान, ब्रह्मा तथा शेषनाग आदि) मिली क मैना क बुझेलखिन, मैना कहलखिन कि हम गौरी क जहर द देव मुदा एहन कुरूप वर सं गौरी क विवाह नहि करब । हिमालय एलखिन आ मैना क कहलखिन - कि किया एना बताहि जेकाँ कैरत छी, त्रिलोकिनाथ स्वंग द्वार पर आयल छैथ आ अहाँ जिद केने बैसल छी, मुदा मैना कहलखिन गौर क पाथरि में बानहि पोखैर में डूबा देव मुदा ओकर विवाह महादेव सं नहि करब । विष्णु सेहो मनेलखिन मुदा मैना अपना बात ध

मधुश्रावणी पूजा कथा, आठम दिनक- गौरी- विवाहक वर-बरियाती

महादेव काशीमे सप्तर्षिक बजेलनि। ओ लोकनि एला। वशिष्ठक संग हुनकर स्त्री अरुन्धती सेहो एली। महादेव सभकें विवाहक कथा लऽ हिमालयक ओतऽ पठेलनि। ऋषि लोकनिसँ महादेवक अनुरोध सुनि हिमालय आ मेना केर आँखिसँ नोर झहरऽ लगलनि। ऋषि-मुनि गौरी आशीर्वाद देलनि। अरुन्धती मेनाकें महादेवक महिमाक गुणगान सुनेलनि। कथा ठीक बार विवाहक दिन ताकल गेल। विवाहक दिन ताकल गेल। विवाहक दिन फागुन वदि चतुर्दशी निश्चित भेल। सप्तर्षि लोकनि प्रसन्न भऽ काशी घुरि एला। एहि ठाम आबि महादेवकें सभ बात कहलनि । महादेव प्रसन्न भऽ हुनका लोकनिकेँ बरियाती चलबा लेल हकार देलनि। ओहिठामसँ महादेव कैलाश एला। देवता लोकनिकेँ निमन्त्रण आ हकार देबाक भार नारद मुनिकें देलनि। महादेवक गण सभ बरियातीक तैयारी करऽ लगला । वरकें सजाओल जाय लागल। हुनका गहना की देल जेतनि? जे सभ हिनका लग गहना रहनि ताहिसँ हुनका सजाओल गेल। माथपर चन्द्रमाक मुकुट, शरीरमे साँपक गहना । जटाकें झारि कऽ नीक जकाँ बान्हि देल गेलनि । नवका बाघम्बर ओढ़ाओल गेलनि। एतबे श्रृंगार महादेव परम सुन्नर लागऽ लगला । चारिम दिन महादेवक बरियाती हिमालयक ओतऽ पहुँचल | हिमालय अपन कुटुम्बक संग बरियाती लोकनिक सत्कारम

मधुश्रावणी व्रत कथा : पाँच दिनकथा

महादेब परिबारक वर्णन :- दक्ष, सती के प्राण त्याग्लाक बाद हिमालय के रूप में अवतार लैथ I हुनका क्रमशः पाँच टा कन्या भेलनि उमा, पार्वती, गंगा, गौरी आ संध्या । एही पाँचो क विवाह बेरि बेरि महादेव सं भेलनि। उमाक उत्पति आ महादेब संग जुडब :- हिमालय के मनाइन नामक स्त्री सं एकटा बेटी भेलखिन। जखन ओ पाँच वर्ष क भेलि त महादेव क वर रूप में प्राप्त करवाक कामना सं तपस्या करवा हेतु विदा भेलि । मनाईन मना करैत रहि गेलखिन मुदा ओ नहि मानलि तें हुनकर नाम उमा पङलैन । आठ वर्ष क भेला पर महादेव हुनका तपस्या से प्रसन्न भई हुनका सं विवाह क लेलैथ आ मनाईन अपन माथ पिटैत रहि गेली कि हुनकर सुकुमारी क विवाह बूढ बर सं भ गेल। पार्वतीक उत्पति आ महादेव संग बिआह :- हिमालय क दोसर बेटी पार्वती भेलखिन। पार्वती एक दिन फूल तोरबाक लेल कनक शिखर पर गेलखिन । ओतए एकटा बूढबा क बसहा पर चढल आ डमरू बजबैत देखलखिन। पार्वती चिन्ह गेलखिन जे इत साक्षात् महादेव छैथ। सखि सब के मना केला क बादो  ओ ओकरा सब के घर विदा क बसहा पर बैसी महदेव संगे चलि गेली। मानाइन फेर कानैत बाजैत रहि गेली । गंगाक आविर्भाव :- हिमालय क तेसर बेटी भेलखिन गंगा। ओ जखन पैघ भे

तेसर दिनक कथा पृथ्वीक जन्म

तेसर दिनक कथा पृथ्वीक जन्म ब्रह्मा, विष्णु आ नो देवता सब एक दिन सभा कए विचार कएलनि जे संसारमे पाप ततेक पसरि गेल अछि जे पृथ्वी भागि क' पाताल चलि गेल छथि। हुनका कोनो तरह ऊपर आनक चाही तखनहि संसार बसि सकैत अछि । सब मिलि पाताल गेलाह आ पृथ्वी प्रार्थना कएल ऊपर अएवा लेल । पृथ्वी कहलथिन्ह-"लोक हमरा ऊपर रहैत अछि आ हमरे ऊपर मल मूत्र त्याग करत अछि। एहिसँ हमर अपमान होइत अछि जे हमरा सहा नहि अछि।" देवता लोकनि कहलनि—“अहाँ एकर चिन्ता नहि करू । जे अहाँक ऊपर मल-मूत्र करत ओकरा देखि लेत, तकरा स्वयं ओंकर पाप होएतेक । जे अहाँस बिना क्षमा मंगने अहाँक ऊपर पएर रोपत सेहो पापक भागी होएत।" देवता लोकनिक अनुनय-विनय पर जखन पृथ्वी ऊपर एलीह, तखन डगमगाइत छलीह । तखन विष्णु भगवान मधुश्रावणी व्रत कथा काछुक रूप धारण कए अपन पीठ पर राखि लेलनि । समुद्र मन्थन देवता लोकनि सुमेरु पर्वत पर समुद्र मन्थनक विचार विमर्श लेल एकत्र भेलाह। विष्णुक विचार भेल जे ई कार्य देव-दानव सब मिलिक करथि। हुनके विचारसँ वासुकी नाग बजाओल गेलाह। ओ मन्दराचल पर्वतमे अपन देहके लपटाए ओकरा उखाड़ समुद्रक कात लए आनल ओ समुद्र मन्थन प्राप्त अम

दोसर दिनक कथाबिहुला ओं मनसाक कथा

दोसर दिनक कथा बिहुला ओं मनसाक कथा मनसा महादेवक मानस पुत्री छलीह । ओ जनमितहि युवती भए गेलीह । नाङटि रहलाक कारणे हुनक लाजक रक्षा हेतु साँप हुनका देहमे लेपटाय गेल । ऐ. सबसँ गौरी अप्रसन्न भार गेलीह । तें हेतु मनसाक कैलाश त्यागि अन्यत्र जाए पडलनि । महादेवक कृपास आ मर्त्य- भुवन चलि ऐलीह । हुनक इच्छा छल जे लोक हुनक पूजा करए ओहि समयमे मर्त्यलोकमे चन्द्रधर (चन्दू) नामक एक पैघ सौदागर रहए । पैक देखाउसि आनो लोक करैत अछि। तें मनसाक मौनमे भेल जे पहिने चन्दूए हमर पूजा करए त देखा-देखी आनो हमर पूजा करए लागत । चन्दू महादेवक परम भक्त छल। ओ महादेव छोड़ि आन देवताक पूजा करब नहि गछलक । ओकर उत्तर छ जे दहिना हाथ महादेवक देने छियनि बामा हाथे हम अहाँक पूजा कए सकैत छी ।" मनसा ई. नहि जंचल। ओ तमसा गेलीह । चन्दूक छओ गोट बेटाक ओ साँप इसबार्क मारि देलनि । चन्दूक बूढ़ारीमे पुनः एक बेटा भेल । हुनक टिप्पनि देखि ज्योतिषी कहलक जे इही बेशी दिन नहि जीताह। हिनका विवाहक दिन कोबरहिमे साँप इंसि लेत । चन्दू अत्यन्त दुःखी भेलाह किन्तु साध्य कोन ओहि बेटाक नाम लक्ष्मीधर (बाली लखन्दर) पड़ल । लक्ष्मीधर के छवे मास भेला पर चन्दू अप

मधुश्रावणी व्रत कथापहिल दिनक कथामौना पंचमीक कथा

मधुश्रावणी व्रत कथा पहिल दिनक कथा मौना पंचमीक कथा एक दिन एक बूढ़ी स्नानक हेतु धार गेला पर देखलन्हि जे धारमे चिकनी पात पर पाँच गोट किछु लहलहाइत छल । ओ जीव बूढ़िके देखि बाजल हे बूढ़ी । गाम जा लोककें सूचित करियो जे आइ मौना पञ्चमी थिकैक आइ लोक पाँच झाक चिक्कनि माँटि आनि, घर आँगन पवित्रसँ नीपि, तेलकूड लगाए, स्नान कर अँगनामे चिकनी माँटिक पाँच टा थुम्हा बनावधि । ताहिमे सिन्दुर-पिठार लगाए उपरसँ दुबि साटि देथि । नव वासनमे खीर घोरजाठर रान्हथि। विसहराक पूजा कए हुनका दूध लावा चढ़ावथि आ खीर घोरजावर उत्सर्गंथि। झोआ नेबो, आमक पखूआ, अमतौआ दाड़िम, नीमक पात, नेङरा कुश आ धामिक पात आदि चढ़ावधि । ई सब केलाक बाद आइ सब केओ तीतकोत खाए खीर-घोरजाउर खाथि । घरक दुआरिक दुनू भाग गोबरसँ फ्रेंच काढ़ने नागक चित्र बनाए, ओकर मुँहमे दही आ दूबि लगा देथि । जे केओ एहि तरह पावनि करती तिनका सब प्रकारक कल्याण हेतन्हि आज जे ऐना नहि करती तिनका हानि होयतनि । बूढ़ी नहाक आङन एलीह त गाममे सबके कहि देलथिन । गामक किछु लोक ई पावनि नहि केलक आऽ किछु लोक एकरा फूसि फटक बूझि अनठाए देलक पावनि नहि कएलक । जे सब पावनि केलक से सब ठीक रहल आ जे सब

सांझ

सांझे काली घर दीप लेसि लीअ हे गोर लागि लीअ हे कथी केर दीप कथीए सूत-बाती कथी केर तेल जरय सारी राती सोना केर दीप पाटक सूत-बाती सरिसो केर तेल जरय सारी राती जरय लागल दीप झमकऽ लागल बाती खेलय लगली संझा मइया चारू पहर राती साँझे काली घर दीप लेसि लीअ हे गोर लागि लीअ हे मुरलीधारी यौ सांझ पड़ैते घर आयब कथी केर दीप कथी सूत-बाती मूरलीधारी यौ कथी केर तेल जरायब सोना केर दीप मुरली सूत-बाती मुरलीधारी यौ सरिसो केर तेल जरायब जरय लागल दीपधारी झमकऽ लागल बाती मुरलीधारि यौ खेलऽ लगली संझा सारी राती सांझ दियऽ सांझ दियऽ जसुमति मइया बीति गेल पहिल सांझ कथी केर दीप कथीक सूत-बाती कथीक तेल जरायब सांझ सोनाकेँ दीप पाटक सूत-बाती सरिसो केर तेल जरायब सांझ जरय लागल दीप झमकय लागल बाती खेलय लगली संझा मइया सारी राती सांझ भयो घर दियरा जरी रे दियरा के चकमक हीरा जरी रे कथी के दीप कथीक सूत-बाती कथी के तेल जरय सारी राती सोना के दीप पाटहि सूत-बाती सरिसो के तेल जरय सारी राती जरय लागल दीप झमकऽ लागल बाती खेलऽ लगली संझा मइया चारूपहर राती सांझ भयो मुख दर्शन हे सखि सुन्दर भवनमे के गाबथि के बजाबथि के आरती उतारथि हे सखि सुन्दर

पाबनि गीत (मधुश्रावणी

आयल हे सखि सर्व सोहाओन साओन केर महिनमा ठाँओं कयलहुँ अरिपन देलहुँ लीखल नाग-नगिनियाँ फूल लोढ़लहुँ पाती अनलहुँ पूजू नाग-नगिनियाँ लाबा भुजलहुँ दूधो अनलहुँ खाथु नाग-नगिनियाँ आयल हे अलि सर्वसोहाओन साओन केर महिनमा.....by mala jha 

पाबनि गीत (मधुश्रावणी

आयल सखि हे परम सोहाओन साओन के महिनमा मधुश्रावणी पाबनि आयल सीता राम मिलनमा भरि-भरि डाला फूल लोढ़ब माला गाँथब प्रेम सँ माँ बिसहराकेँ आबि चढ़यबनि पूजा करब अड़हल सँ लाबा दूध देबनि छिड़ियाइ दीप जरय अहिबात केर जुग-जुग सोहागिन रहथु पबनैतिन जीबथु दुलहा ललनमा आयल सखि हे सर्वसोहाओन सा ओन के महिनमा......by mala jha 

पाबनि गीत (मधुश्रावणी

बाबा यौ पाबनि मोर लग आयल प्रभुजी नहिए एलखिन ना बाबा यौ साओन भादव के नदिया उमड़ल प्रभुजी कोना कऽ औथिन ना बेटी हे भेजबइ सोना के घोड़बा कि प्रभुजी चढ़िकऽ औथिन ना बाबा यौ पाबनि मोर लग आयल प्रभुजी नहिए एलखिन ना.....by mala jha 

पाबनि गीत (मधुश्रावणी

आजु ई पाबनि बालमु संग पूजब नहि एला बालम हमार हे सासु निदर्दी दर्दो ने जानल नहि देलनि भार पठाय हे दिआदिनि निदर्दी दर्दो ने जानल नहि देलनि गौर बनाय हे ननदो निदर्दी दर्दो ने जानल नहि देलनि साजी सजाय हे...by mala jha 

पाबनि गीत (मधुश्रावणी

लालहि वन हम जायब  मैथिली लोकगीत लालहि वन हम जायब, फूल लोढ़ब हे माइ हे सिन्दुर भरल सोहाग बलमु संग गौरी पूजब हे पीयर वन हम जायब, फूल लोढ़ब हे माइ हे सोनहि भरल सोहाग बलमु संग गौरी पूजब हे हरियर वन हम जायब, फूल लोढ़ब हे माइ हे बेलपत्र भरल सोहाग बलमु संग गौरी पूजब हे कारी वन हम जायब, फूल लोढ़ब हे माइ हे काजर भरल सोहाग बलमु संग गौरी पूजब हे उज्जर वन हम जायब, फूल लोढ़ब हे माइ हे शांखहि भरल सोहाग बलमु संग गौरी पूजब हे पाँचो वन हम जायब, फूल लोढ़ब हे माइ हे पाँचो भरल सोहाग बलमु संग गौरी पूजब हे....by mala jha 

गौरीक गीत

पहिल पहर गौरी पूजल वर मांगल हे आहे ऋषि जनक सन बाप कि माय सुनयना रानी हे दोसर पहर गौरी पूजल इहो वर मांगल हे आहे मांगल दशरथ सन ससूर कि सासु कौशिल्या रानी हे तेसर पहर गौरी पूजल इहो बर मांगल हे मांगल रामचन्द्र सन कन्त देओर बाबू लछुमन हे चारिम पहर गौरी पूजल इहो वर मांगल हे मांगल जनकपुर नैहर कि सासुर अयोध्या सन हे पांचम पहर गौरी पूजल इहो वर मांगल हे मांगल लव-कुश सन पुत्र कि सेवक श्री हनुमान हे......by mala jha 

गौरीक गीत

गिरिजा पूजैत सिया फड़कय बामा नयना हे शुभ अंगक फरकब सखि हे राति देखल हम सपना हे शुभ अंगक फरकब गोर छबीले श्यामल सलोने प्रीतम जनकजी के अंगना हे शुभ अंगक फरकब गोरे कुबंर मोर देओर हयता प्रीततम श्यामल सलोना हे शुभ अंगक फरकब ई सुनि हँसि जनक जी सँ कहलनि जिनकर नाम सुनयना हे शुभ अंगक फरकब तुलसीदास कहे सीता बड़ भागिनि पाओल वर श्याम सलोना हे शुभ अंगक फरकब गिरिजा पूजैत सिया के फरकय बामा नयना हे शुभ अंगक फरकब......by mala jha 

गौरीक गीत

गौरी पूजि लीअ जनक भवनमे हे सुकुमारी सिया पूजि पूजि मांगू अहिबात हे सुकुमारी सिया एक हाथ लीअ सीता फूल केर डलिया हे सुकुमारी सिया दोसर हाथे गौरी पूजू आजु हे सुकुमारी सिया जाहि लए सभ दिन जप-तप कयलौं हे सुकुमारी सिया सेहो वर भेटला भगवान हे सुकुमारी सिया गौरी पूजि लीअ जनक भवनमे हे सुकुमारी सिया

गौरीक गीत

फूल लोढ़न चलू फुलबरिया सीता के संग सहेलिया केओ आगाँ चले केओ पाछा चले चले बीचहिमे जनक दुलरिया केओ बेली लोढ़य केओ चमेली लोढ़य केओ लोढ़य अड़हूल केर कलिया केओ गौरी पूजय केओ गिरिजा पूजय केओ पूजय जनक जी के बगीया सीता के संग सहेलिया.....by mala jha

गौरीक गीत

देखैत गेन्दा बड़ लाल गे मलीनियां देखैत गेन्दा बड़ लाल किनकर बाड़ी बेली चमेली किनकर बाड़ी गुलाब गे मलीनियां देखैत गेन्दा बड़ लाल शिवजी के बड़ी बेली चमेली गौरी केर बाड़ी गुलाब गे मलीनियां देखैत गेन्दा बड़ लाल कथीए लोढ़ब बेली चमेली कथीए लोढ़ब गुलाब गे मलीनियां देखैत गेन्दा बड़ लाल आँचरमे लोढ़ब बेली चमेली फांगड़मे लोढ़ब गुलाब गे मलीनियां देखैत गेन्दा बड़ लाल किनका चढ़ायब बेली चमेली किनका चढ़ायब गुलाब गे मलीनियां देखैत गेन्दा बड़ लाल शिवकेँ चढ़ायब बेली चमेली गौरी चढ़एबनि गुलाब गे मलीनियां देखैत गेन्दा बड़ लाल किनकासँ मांगब अनधन लछमी किनकासँ माँगब सोहाग के मलीनियां देखैत गेन्दा बड़ लाल शिवजीसँ माँगब अनधन लछमी गौरीसँ माँगब सोहाग गे मलीनियां देखैत गेन्दा बड़ लाल देखैत गेन्दा बड़ लाल के मलिनियां देखैत गेन्दा बड़ लाल....by mala jha

गौरीक गीत

नदिया किनारे गौरी ठार रे, फूल द दे मलिनिया गिरिजा पुजन हम जाएब रे, फूल द दे मलिनिया कथि मे लोडब बेली चमेली, कथि मे लोडब गुलाब गे, फूल द दे मलिनिया साजी मे लोडब बेली चमेली, खोइँचा मे लोडब गुलाब गे, फूल द दे मलिनिया नदिया किनारे गौरी ठार रे………… किनका चढायब बेली चमेली, किनका चढायब गुलाब गे, फूल द दे मलिनिया नदिया किनारे गौरी ठार रे………… किनका सँ मागँब अनधन सम्पैत ,किनका सँ मागँब सोहाग गे ,फूल द दे मलिनिया नदिया किनारे गौरी ठार रे………… लक्ष्मी सँ मागँब अन्धन सम्पैत गौरी सँ मागँब सोहग गे, फूल द दे मलिनिया नदिया किनारे गौरी ठार रे…………by mala jha

गौरीक गीत

गौरी पूजन चलली सीता, पिता के नगरिया हे पिता के नगरिया सिया, जनक दुअरिया हे हाथकऽ लेली फूलक डाली, सिन्दूर केर पुड़िया हे गौरी पूजन चलली सीता, पिता के नगरिया हे हाथ कऽ लेली मधुर खांड़, लाल अड़हुल केर कलिया बेलपत्र सभ तोड़थि सखिया, अपने अड़हूल कलिया गौरी पूजन चलली सीता, पिता के नगरिया हे....by mala jha

मैथिली – गौरी गीत

नदिया किनारे गौरी ठार रे, फूल द दे मलिनिया गिरिजा पुजन हम जाएब रे, फूल द दे मलिनिया कथि मे लोडब बेली चमेली, कथि मे लोडब गुलाब गे, फूल द दे मलिनिया साजी मे लोडब बेली चमेली, खोइँचा मे लोडब गुलाब गे, फूल द दे मलिनिया नदिया किनारे गौरी ठार रे………… किनका चढायब बेली चमेली, किनका चढायब गुलाब गे, फूल द दे मलिनिया नदिया किनारे गौरी ठार रे………… किनका सँ मागँब अनधन सम्पैत ,किनका सँ मागँब सोहाग गे ,फूल द दे मलिनिया नदिया किनारे गौरी ठार रे………… लक्ष्मी सँ मागँब अन्धन सम्पैत गौरी सँ मागँब सोहग गे, फूल द दे मलिनिया नदिया किनारे गौरी ठार रे…………by mala jha

मैथिली – गौरी गीत

मैथिली – गौरी गीत पिया यो छोडु नै आँचर, भोर भिनसरवा भेलै ना, धनी ए बैसु मोर पलङ, अधिरतिया भेलै ना भोरे जे उठबैइ, फूल लोढी लायब से दुनु मिली ना पिया यौ गौरी के आराधब से दुनु मिली ना, पिया यो छोडु नै आँचर …………….. भोरे जे उठबैइ जल भरी लायब से दुनु मिली ना पिया यौ गौरी के आराधब से दुनु मिली ना, पिया यो छोडु नै आँचर ……………. भोरे जे उठबैइ नैबेध किनी लायब से दुनु मिली ना पिया यौ गौरी के आराधब से दुनु मिली ना, पिया यो छोडु नै आँचर …………….by mala jha

Madhushravani Vrat Katha : सुहाग का अनोखा पर्व मधुश्रावणी, ऐसी है कथा

सावन शुक्ल तृतीया तिथि को सुहाग का पर्व हरियाली तीज और मधुश्रावणी का पर्व मनाया जा रहा है। मधुश्रावणी मुख्य रूप बिहार के मिथिला क्षेत्र में प्रचलित त्योहार है। सुहागन स्त्रियां इस व्रत के प्रति गहरी आस्था रखती हैं। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत पूजन से वैवाहिक जीवन में स्नेह और सुहाग बना रहता है। मधुश्रावणी व्रत को लेकर सबसे ज्यादा उत्साह और उमंग नवविवाहिता कन्याओं में देखने को मिलता है। नवविवाहित कन्याएं श्रावण कृष्ण पंचमी के दिन से सावन शुक्ल तृतीया तक यानी 14 दिनों तक दिन में बस एक समय भोजन करती हैं। आमतौर पर कन्याएं इन दिनों में मायके में रहती हैं और साज ऋंगार के साथ नियमित शाम में फूल चुनती हैं और डाला सजाती हैं। फिर इस डाले के फूलों से अगले दिन विषहर यानी नागवंश की पूजा करती हैं। श्रावण शुक्ल तृतीया के दिन इस पर्व का समापन मधुश्रावणी के रूप में होता है। इस पूरे पर्व के दौरान 14 दिनों की अलग-अलग कथाएं हैं जिनमें मधुश्रावणी दिन की रोचक कथा राजा श्रीकर और उनकी बेटी की है। मधुश्रावणी व्रत कथा राजा श्रीकर के यहां कन्या का जन्म हुआ तो राजा ने पंडितों को बुलवाकर उसकी कुंडली देखी। पंडितों ने

मधुश्रावणी व्रत कथा (Madhushravani Vrat Katha)

Madhushravani Vrat 2023 will start from 7th July and end on 19th August 2023. Due to मलमास, the vrat will be observed in two parts- from 7th to 17th July and 17th to 19th August. मधुश्रावणी व्रत बिहार के मिथिलांचल का मुख्य पर्व है। मधुश्रावणी का व्रत नव विवाहित औरतें अपने मायके में मनाती हैं। इस व्रत में पत्नी अपने पति की लंबी आयु की कामना करती है।  इस व्रत में विशेष पूजा गौरी शंकर की होती है। सावन का महीना आते ही मधुश्रावणी के गीत गूंजने लगते हैं। मधुश्रावणी की तैयारियों में सभी शादीशुदा महिलाएं जुड़ जाती हैं। यह त्योहार महिलाएं बहुत ही धूम धाम के साथ दुल्हन के रूप में सज धज कर मनाती हैं। शादी के पहले साल के सावन महीने में नव विवाहित महिलाएं मधुश्रावणी का व्रत करती है। सावन के कृष्ण पक्ष के पंचमी के दिन से इस व्रत की शुरुआत होती है। मधुश्रावणी जीवन में सिर्फ एक बार शादी के पहले सावन को किया जाता है। यह व्रत नवविवाहित महिलाएं करती है। नवविवाहित औरतें नमक के बिना 14 दिन भोजन ग्रहण करती है। इस व्रत में अनाज,  मीठा भोजन खाया जाता है। व्रत के पहले दिन फलों को खाया जाता है। यह पूजा लगातार 1

तपस्या के समान है मधुश्रावणी की यह पूजा, 14 दिनों तक महिलाएं नमक नहीं खाती हैं

तपस्या के समान है मधुश्रावणी की यह पूजा, 14 दिनों तक महिलाएं नमक नहीं खाती हैं मधुश्रावणी के दिन जलते दीप के बाती से शरीर कुछ स्थानों पर [ घुटने और पैर के पंजे ] दागने की परम्परा भी वर्षों से चली आ रही हैं। इसे ही टेमी दागना कहते हैं । सावन का महीना आते ही मिथिलांचल संस्कृति से ओत-प्रोत मधुश्रावणी की गीत गूंजने लगे हैं। लोक पर्व मधुश्रावणी की तैयारियों में नव विवाहिताएं जुट गई हैं। पति की लंबी आयु की कामना के लिए चौदह दिवसीय यह पूजा सिर्फ मिथिला वासियों के बीच हीं होता है । यह पावन पर्व मिथिला की नवविवाहिता बहुत ही धूम-धाम के साथ दुल्हन के रूप में सजधज कर मनाती है। मैथिल संस्कृति के अनुसार शादी के पहले साल के सावन माह में नव विवाहिताएं मधुश्रावणी का व्रत करती हैं। सावन के कृष्ण पक्ष के पंचमी के दिन यानि 24 जुलाई से मधुश्रावणी व्रत की शुरुआत हुई और पांच अगस्त को इसका समापन होगा। इस वर्ष यह पर्व 14 दिनों का होगा। मैथिल समाज की नव विवाहितों के घर मधुश्रावणी का पर्व विधि-विधान से होता है । इस पर्व में मिट्टी की मूर्तियां, विषहरा, शिव-पार्वती बनाया जाता है मधुश्रावणी जीवन में सि

सम्पूर्ण मधुश्रावणी पूजा

मधुश्रावणी पूजा सैं पहिने लड़का बाला ओहिठाम लड़की बला क ओतय सं नोत जाइत अछि. नोत में पांच टा रांगल सुपारी आ पीरा कागज़ पर लाल कलम सं लिखल लड़का क पिता क नाम सं पता जाइत अछि . मधुश्रावणी पूजा क ओरिआओन जाहि कन्या के नव विवाह भेल छनि ओ सावन क चौठ क संध्या काल भिन्न प्रकारक फूल आ पात तोरि रखैत छैथ जाहि घर में पूजा होयत टकरा बढियां सैं साफ़ कय निचा देल चित्र क अनुसार अरिपन पडत । पूजा   क   सामग्री  – गौरी बनेवाक लेल साँझ खन भगवती ,महादेव ,ब्राह्मण ,हनुमान और गौरी कय गीत गावि, दुईब,कांच हल्दी ,धनिया (कनी )मिला क गौर बनत,जकरा ढउरल सरवा पर एकटा सिक्का पर गौरी राखि पान क पात स झापि ,पान क पात क ऊपर सिंदूरक गद्दी राखि ललका कपडा स झापि भगवति लग राखि देवेइ I पाँच टा मैना पात आ पाँच टा केरा पात सासुर दिस सं आ पाच टा मैना पात आ पाँच टा केरा पात नैहर दिस सं रहत जाहि में सबटा पर पाँच पाँच टा बिसहारा सिन्दूर सं ,काजर सं ,पिठार सं आ श्री खंड चानन सं लिखल जायत.   कुसुमावती,पिङ्गला,चनाई,एवं लीली क पूजा क लेल चारि गोट करा क पात क पुड़ा बनायल जायत नैवेद्य क लेल – अरवा चावल,चूड़ा,चीनी ,आम,कटहल,केला,अंकुरी ,