प्रथमहि गेल धनि प्रीतम पास सजनी गे, हिरदय अधिक भेल लाज सजनी गे। ठाढि भेलि नि अंगों नहि डोलय, हेम-सुरुति सनि कर धए लेल पहु पास बैसाए सजनी गे, बैसलि रहलि धनि वदन झुकाए सजनी गे । मुख हेरि ताकए भमर झाँपि लेल सजनी गे, आँकम भरिके कमलमुखि लेल सजनी गे । भनहि विद्यापति देह सुमति सजनी गे,पुरुषक नहि किछु आस सजनी गे।
Maithli lokgeet