तपस्या के समान है मधुश्रावणी की यह पूजा, 14 दिनों तक महिलाएं नमक नहीं खाती हैं मधुश्रावणी के दिन जलते दीप के बाती से शरीर कुछ स्थानों पर [ घुटने और पैर के पंजे ] दागने की परम्परा भी वर्षों से चली आ रही हैं। इसे ही टेमी दागना कहते हैं । सावन का महीना आते ही मिथिलांचल संस्कृति से ओत-प्रोत मधुश्रावणी की गीत गूंजने लगे हैं। लोक पर्व मधुश्रावणी की तैयारियों में नव विवाहिताएं जुट गई हैं। पति की लंबी आयु की कामना के लिए चौदह दिवसीय यह पूजा सिर्फ मिथिला वासियों के बीच हीं होता है । यह पावन पर्व मिथिला की नवविवाहिता बहुत ही धूम-धाम के साथ दुल्हन के रूप में सजधज कर मनाती है। मैथिल संस्कृति के अनुसार शादी के पहले साल के सावन माह में नव विवाहिताएं मधुश्रावणी का व्रत करती हैं। सावन के कृष्ण पक्ष के पंचमी के दिन यानि 24 जुलाई से मधुश्रावणी व्रत की शुरुआत हुई और पांच अगस्त को इसका समापन होगा। इस वर्ष यह पर्व 14 दिनों का होगा। मैथिल समाज की नव विवाहितों के घर मधुश्रावणी का पर्व विधि-विधान से होता है । इस पर्व में मिट्टी की मूर्तियां, विषहरा, शिव-पार्वती बनाया जाता है मधुश्रावणी जीवन में सि
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