चललि शयन गृह सुन्दरि रे, आनन्द उर वृन्दा शिर सौं ससुराल घोघट रे, जनि उगल चन्दा ॥ चलइत नूपुर किंकिन रे, दौड़ल दुहू काने दुर से हँस शब्द करू रे, घर पिय जिप शाने ।। डरहु ने जानि चकबा शिशु रे, उर कुच युग छाजे पतन प्रश्न और आंसर रे, जति झपटत वाजे नाभि विवरण सं निकसलि रे, दोमावलि साँपे । से सौतिन वध कारन रे, आँचर रहु झापे ।। कह अनुभव करि "वादरि" रे, देखैत बड़ सुखलागे
बम-बम भैरो हो भूपाल, अपनी नगरिया भोला, खेबि लगाबऽ पार । कथी के नाव-नेवरिया, कथी करूआरि, कोने लाला खेवनहारे, कोन उतारे पार । सोने केर नाव-नेवरिया, रूपे करूआरि, भैरो लाला खेवनहारे, भोला उतारे पार । जँ तोहें भैरो लाला खेबि लगायब पार, मोतीचूर के लडुआ चढायब परसाद । हाथी चलै, घोड़ा चलै, पड़ै निशान, बाबा के कमरथुआ चलै;, उठै घमसान । छोटे-मोटे भैरो लाला, हाथीमे गुलेल, शशिधर के दोगे-दोगे रहथि अकेल सखि हे सुनै छलिएन शिव बड़ सुन्दर, मुदा देख छिऐ रूप भयंकर है| सखि हे सुनै छलिऐन शिव औता गज चलि हे, मुदा शिव ऐला बड़द चढ़ा है । सखि हे सुनै छलिऐन शिव के पिताम्बर हे, मुदा देखे छिऐन ओढने बाघम्बर हे । भनहि विद्यापति गावल, शिव सुन्दर वर गौरी पावल
Comments
Post a Comment