अवधि मास छल भादव सजनी गे, निज कय गेला बुझाय से दिन आबि तुलायल सजनी गे, धिरज धयल ने जाय । अति आकुल पहु बिनु सजनी गे, सुन्दर अति सुकुमार । अकछि हिया पथ हेरथि सजनी गे, अजहुँ ने आयल मुरारी । खन-खन मदन दहो दिस सजनी गे, अजहुँ ने आयल मुरारी । से दुख काहि बुझायब सजनी गे, बैसब ककरा लग जाय । हरि गुण सुमरि बिकल भेल सजनी गे, के बहुत दु:ख मोर । विद्यापति कवि गाओल सजनी गे, आयल नन्द किशोर
बम-बम भैरो हो भूपाल, अपनी नगरिया भोला, खेबि लगाबऽ पार । कथी के नाव-नेवरिया, कथी करूआरि, कोने लाला खेवनहारे, कोन उतारे पार । सोने केर नाव-नेवरिया, रूपे करूआरि, भैरो लाला खेवनहारे, भोला उतारे पार । जँ तोहें भैरो लाला खेबि लगायब पार, मोतीचूर के लडुआ चढायब परसाद । हाथी चलै, घोड़ा चलै, पड़ै निशान, बाबा के कमरथुआ चलै;, उठै घमसान । छोटे-मोटे भैरो लाला, हाथीमे गुलेल, शशिधर के दोगे-दोगे रहथि अकेल सखि हे सुनै छलिएन शिव बड़ सुन्दर, मुदा देख छिऐ रूप भयंकर है| सखि हे सुनै छलिऐन शिव औता गज चलि हे, मुदा शिव ऐला बड़द चढ़ा है । सखि हे सुनै छलिऐन शिव के पिताम्बर हे, मुदा देखे छिऐन ओढने बाघम्बर हे । भनहि विद्यापति गावल, शिव सुन्दर वर गौरी पावल
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