देख सखि दाइ माइ, ठबलक बभना आई ।
पहिने सुनैत छलियनि जस तीन भुवन,
आब सुनैत छियनि घर नहिं अंगना ।
भोला के माय-बाप नहि केयो छनि अपना,
। गौरी के सासु-ननदि
सब सपना ।
गौरी तप कयलनि रात दिना, तिनका एहन वर देल विघना ।
भनहि विद्यापति सुनु मैना, नाचथि सदाशिव भरि अंगना ।
नारद ढहुत बुझा हम कहलहुँ
गौरी लय एहन वर अनलहुँ यो ।
हमरो गौरी छथि बारह बरख केर
बुढ़वा वर लय अयलहुँ यो ।
नारद बड़ अजगुत अहाँ कयलहुँ
गौरी लय एहन बर लयलहुँ यो ।
तीनि भुवन वर कतहुँ न भेटल
तँ घर घुरि फिरि अबितहुँ यो ।
बारि गौरी छथि अल्प बयस केर
कनिको नहि बिचारलहुँ यो ।
भनहि विद्यापति सुनिय मनाइनि
त्रिभुवन पति लय अयलहुँ यो ।
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