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अहँ जगजननी दया के सागर, करखन उतारव पार हे. जननी

अहँ जगजननी दया के सागर, करखन उतारव पार हे. जननी
हमरा नहि अवलम्ब आन अछि, अहँ छी एक आधार है जननी
= अछि अपार पाबी ने पार, वह अछि जलधारा ।।
कतेक करव करुणा हम हिनका, ई छट बड रखवार है जननी
मुस के यदि मझदार छोड़ब, हंसती सकल संसार की जननी

कखन उतारव पर हैं जननी
                                   
                             ( 2)

है महारानी सिया, काली के महिमा अगम अपार ।
गंगा यमुनासँ माटि मंगायब, हे महारानी सिया ।
ॐच के पीडिया बनायब, हे महारानी सिया 1
कौने फल ओढ़न सिया, के फूल पहिर ।
कौने फूल माता के श्रृंगार, हे महारानी सिया ।
बेली फूल ओढ़न माँ के, चमेली फूल पहिरन ।
अड़हुल फूल माँ के श्रृंगार, हे महारानी सिया ।।
पहिरि ओढिये काली ठाढ़ भेल गहबर ।
सूर्य ज्योति मलीन, हे महारानी सिया ।
महिमा
अगम
अपार, हे महारानी सिया ।
भनइ विद्यापति सुनु माता कालिका 1
सेवक पर होइअउ ने सहाय, हे महारानी सिया ।

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