जोगिया एक हम देखल गे माई ।
अद्भुत रूप कहल नहि जाई ।
पाँच वदन, तिन नया वाला ।।
वसन बहन ओढ़न वध छाला ।
सिर वह गंगा, तिलक सोहे चंदा ।
देखि सरूप मेल दुख-दन्दा ।
एहि जोगियामे रतलि भवानी ।
मन आनल वर कोन गुन जानी ।
कुल नहि सिल, नहि तात-महतारी ।
वएस हिनक थिक लछ जुग चारी ।
सुनु ए मनाइनि विद्यापति बानी ।
इहो जोगिया तरीका त्रिभुवन दानी ।
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