मैथिली लोकगी
(२ )
महिमा अगम अपार, आनन्द मा ।
कथी के आसन माँ हे, कथी को सिंहासन
कओने नाम शराय, आनन्दी माँ है
सोना के
आसन, रतन
सिंहासन ।
काली नाम धराय, आनन्दी माँ हैे ।
जे इहो गाओल माँ हे, पूर्ण फल पाओल ।
दिन-दिन पाबय वरदान, आनन्दी माँ है
( ५ )
अहँ जगजननी सकल दुरख भज्जनि, हमरा बिसरि किये देल
हमहूँ अबोध बोध नहि हमसो, कियेक असह दुख भड
कियेक चरण त हटल अम्ब है, कियेक एहन मन ।
हम अपराध कयल बड़ जननी, मातु क्षमा कर दे
मस कवि कर जोडि विनय करू, हमरा बिसरि किय दे
अहँ जगजननी०
( ६ )
कालिका, एल तोरे द्वार, पूजन बेरिया 1
के चढ़ावे
अक्षत-चानन,
केये पूल-कलिया ।
सेवक चढाने अक्षत-चानन, भगत चढ़ाबे फूल कलिया।
के चढ़ाबे उजरा
छागर,
के छागर करिया ।
सेवक चढाबे उजरा छागर, भगत चढाबे छागर करिया ।
के चढाबे गेरू, के चढाबे अंचरिया
सेवक चढाबे गेरू, भगता
चढाबे अंचरिया
कल जोरि मिनती
करै
छी हे माता
सदा
रहब रछपाले हे कालिका
Comments
Post a Comment